Saturday, July 27, 2024

    खत्म होने के कगार पर सार्क संगठन, संयुक्त राष्ट्र महासभा से इतर इस साल भी नहीं हो सकी सार्क विदेश मंत्रियों की बैठक

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    वॉशिंगटन: न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के इतर सार्क के विदेश मंत्रियों की वार्षिक बैठक इस साल भी नहीं हो सकी। पिछले दो साल को छोड़कर सार्क के गठन के बाद लगभग हर साल सदस्य देशों के विदेश मंत्री यूएनजीए से अलग एक वार्षिक बैठक करते थे। यह बैठक आम तौर पर अनौपचारिक रूप से विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करके इस क्षेत्रीय गुट की नीतियों को तय करती थी ताकि उन्हें सौहार्दपूर्ण ढंग से हल किया जा सके। लेकिन, पिछले साल की तरह इस साल भी संयुक्त महासभा के 77वें सत्र से इतर सार्क के विदेश मंत्रियों की कोई बैठक नहीं होगी। सार्क देशों के लगभग सभी विदेश मंत्री संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिस्सा लेकर अपने-अपने देश को लौट चुके हैं। हालांकि, भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर अभी अमेरिका में ही मौजूद हैं। 2014 के बाद से एक भी सार्क शिखर सम्मेलन का आयोजन नहीं हो सका है।सार्क चार्टर के अनुसार, 2023 में अफगानिस्तान से किसी को सार्क का महासचिव चुना जाना है। लेकिन, वहां की तालिबान सरकार को किसी भी सदस्य देश ने मान्यता नहीं दी है। ऐसे में सार्क का भविष्य अंधकारमय ही नजर आ रहा है।

    पिछले साल तालिबान के कारण नहीं हो सकी थी बैठक
    2021 में सार्क की बैठक अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के कारण न हो सकी थी। पाकिस्तान जबरन तालिबान को सार्क की बैठक में शामिल करवाना चाहता था। भारत ने इस प्रस्ताव का विरोध किया, जिसे बांग्लादेश और नेपाल जैसे देशों का समर्थन भी प्राप्त हुआ। इस कारण सार्क की बैठक नहीं हो सकी थी। 2020 में कोविड महामारी के कारण सार्क की बैठक को टाल दिया गया था। विदेश नीति पर गहरी पकड़ रखने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान की हठधर्मिता और गलत काम करने की नीति सार्क की बैठक में सबसे बड़ी बाधा बन रही है। अफगानिस्तान 2007 में सार्क में शामिल होकर इसका आठवां सदस्य बना था।

    सार्क अध्यक्ष नेपाल ने नहीं बुलाई कोई बैठक
    द काठमांडू पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, सार्क के पूर्व महासचिव अर्जुन बहादुर थापा ने कहा कि स्थिति दिन पर दिन और जटिल होती जा रही है। सार्क काउंसिल ऑफ मिनिस्टर्स की बैठक अध्यक्ष देश के विदेश मंत्री बुलाते हैं। नेपाल सार्क का सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाला अध्यक्ष है और पिछले आठ वर्षों से क्षेत्रीय संगठन का नेतृत्व कर रहा है। लेकिन विदेश मंत्री नारायण खड़का न्यूयॉर्क की यात्रा नहीं कर रहे हैं और वर्चुअल मीटिंग करने की भी कोई योजना नहीं है। पूर्व विदेश सचिव और संयुक्त राष्ट्र में नेपाल के स्थायी प्रतिनिधि मधु रमन आचार्य ने कहा कि विदेश सचिव भी बैठक में भाग ले सकते हैं। पहले भी कई विदेश सचिवों ने अलग-अलग देशों की तरफ से सार्क की मंत्रीस्तरीय बैठक में हिस्सा लिया है।

    2014 के बाद से नहीं हो सका है सार्क शिखर सम्मेलन
    1985 में स्थापित सार्क की बैठकें न होने से यह संगठन अब मरणासन्न स्थिति में है। भारत ने नवंबर 2016 में सार्क की बैठक में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया था। इस कारण सार्क का 19वां शिखर सम्मेलन आयोजित नहीं हो सका था। सार्क चार्टर के अनुसार, यदि कोई सदस्य देश भाग लेने से इनकार करता है, तो शिखर सम्मेलन आयोजित नहीं किया जा सकता है। काठमांडू में 18वें शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने के बाद नेपाल सार्क अध्यक्ष बना था। 2020 में, कोविड महामारी के कारण, न्यूयॉर्क में विदेश मंत्रियों की सार्क बैठक वर्चुअली आयोजित की गई थी।

    नेपाल में चुनाव और अफगानिस्तान के हालात ने बिगाड़ा गणित
    इस बार, सार्क अध्यक्ष के रूप में नेपाल सदस्य राज्यों को निमंत्रण भेज सकता था। इससे सार्क के सदस्य देशों के विदेश मंत्री आमने-सामने की बैठक भी कर लेते और इस संगठन के प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का मौका भी मिल जाता। नेपाली विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने काठमांडू पोस्ट को बताया कि नेपाल में नवंबर में चुनाव होना है, जो सिर्फ दो महीने दूर हैं और काबुल में भ्रम की स्थिति बनी हुई है। ऐसे में विदेश मंत्री नारायण खड़का ने न्यूयॉर्क की यात्रा नहीं करने का फैसला किया है। नेपाल और अन्य सार्क सदस्य अफगानिस्तान में तालिबान सरकार से दूरी बनाए हुए हैं।

    सार्क महासचिव का चुनाव भी सदस्यों के लिए बड़ी आफत
    सार्क सदस्य देशों को अगले साल मार्च में एक नई दुविधा का सामना करना पड़ेगा जब एसाला रुवान वीराकून सार्क महासचिव के रूप में अपना तीन साल का कार्यकाल पूरा करेंगे। ऐसे में सार्क परंपरा के अनुसार, अफगानिस्तान से किसी को सार्क महासचिव का पद ग्रहण करना चाहिए। लेकिन, सार्क के किसी भी सदस्य देश ने तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है। ऐसे में कोई तालिबानी नेता सार्क का महासचिव नहीं बन सकता है। विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि पिछले आठ वर्षों में, 2014 में काठमांडू शिखर सम्मेलन के बाद कोई सार्क शिखर सम्मेलन नहीं हुआ है। इसलिए इस क्षेत्रीय समूह का भविष्य अंधकारमय दिखता है।

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