धरती ने धर्म को चलते देखा, गगन ने भक्ति बरसाई – अशोकनगर से थूबोन तक अद्भुत तीर्थवंदना …
मध्यप्रदेश,रवि जैन। सोमवार की अल सुबह, जब सूरज की पहली किरण ने सहोदरी ग्राम की मिट्टी को छुआ, तब उसी क्षण उस पावन धरा से एक दिव्य यात्रा ने प्रस्थान किया, जिसका नाम है तीर्थ वंदना पदयात्रा।
गंतव्य – दर्शनोदय तीर्थ, थूबोन जी। दूरी 33 किलोमीटर, पर यह दूरी श्रद्धा, समर्पण और भक्ति से भरी वह राह है, जिसमें हर कदम एक भाव, हर श्वास में गुरु के प्रति कृतज्ञता की गूंज दिखी।
यह यात्रा कोई साधारण जुलूस नहीं है। यह तो एक आस्था का समुद्र है, जिसमें 85 से अधिक रथ, झांकियां, बैंड, डीजे, धर्मचक्र, सुदर्शन चक्र और धर्मध्वज के साथ हजारों हृदय लयबद्ध चल रहे हैं। अशोकनगर में जब यह काफिला क्रमबद्ध हुआ, तो यह 3 किलोमीटर लंबा श्रद्धा का सेतु बन गया, मानो चक्रवर्ती की अक्षौहिणी सेना ही चल पड़ी हो, धर्म की जयघोष के साथ।
इस विराट यात्रा के केंद्र में थे– धरमधुरंधर, तीर्थचक्रवर्ती, श्रमणशिरोमणि, मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज। साथ में वर्णी महाराज क्षुल्लक श्री गंभीर सागर जी, क्षु. श्री वरिष्ठ सागर जी, क्षु. श्री विदेह सागर जी और 20 बाल ब्रह्मचारी भैया जी। गुरुजी के चरणों के साथ चलती यह यात्रा किसी दृश्य से नहीं, बल्कि किसी दिव्य दर्शन से कम नहीं है। गुरुदेव के चारों ओर भक्तों का सागर उमड़ रहा था। एक ओर एसपी राजीव मिश्रा और दूसरी ओर कलेक्टर आदित्य सिंह, जैसे सौधर्म इंद्र और कुबेर इंद्र स्वयं गुरु रक्षा में हों।
यात्रा का संचालन कर रहे थे अशोकनगर गौरव ब्रह्मचारी प्रदीप भैया और मुकेश भैया। चक्रवर्ती के रूप में अग्रसर थे राकेश अमरोद, जिन्हें चातुर्मास का प्रथम कलश और पंचकल्याण महोत्सव में भगवान के माता-पिता बनने का अद्वितीय सौभाग्य प्राप्त हुआ।
ललितपुर का 9.5 टन वजनी घंटा, जो अभिनंदनोदय तीर्थ की पहचान है, बहुत मेहनत से यहां लाया गया है क्योंकि इसे उतारना ही बहुत कठिन है, फिर यात्रा में लेकर चलना और भी कठिन लेकिन ललितपुर कमेटी की मेहनत से यह इस यात्रा का आकर्षण बना है। जब इसे लोग बजाते, तो ऐसा लगता मानो आकाश में धर्म की ध्वनि गूंज उठी हो। उसके साथ ललितपुर, मुंगावली, ईसागढ़, शाढोरा, पिपरई, पुण्योदय बजरंगगढ़, गोलाकोट, सांगानेर, महरोनी, खुरई, पचराई और करैरा सहित दर्जनों झांकियां जुड़ती गईं। कहीं बालक बैंड की ताल पर थिरकते थे, कहीं महिलाएं पुष्पवर्षा करती थीं, पूरा मार्ग तीर्थमय हो उठा।
जब यह काफिला अमरोद ग्राम पहुंचा, तो स्वागत का दृश्य अवर्णनीय था।
गांव की महिलाओं ने भक्ति से झाड़ू लगाकर मार्ग को शुद्ध किया, रंगोली से सजी सड़कें, सिर पर कलश रखी स्त्रियां, हाथों में दीप लिए युवतियां, मानो स्वयं देवांगनाएं धरा पर उतर आई हों।
ग्रामीणजन दूध, पानी और फूल लेकर खड़े थे – “गुरुजी हमारे गांव आए हैं” – यह भाव हर आंख में चमक रहा था। अमरोद में दर्शन सिंह यादव की मां गदगद हुईं और उनकी आंखों में खुशी के आंसु देखे गए, वो बोली मेरा यह परम सौभाग्य है जो गुरुजी मेरी कुटिया में पधारे हैं।
पूर्व मंत्री बृजेंद्र सिंह यादव और अन्य जनप्रतिनिधियों ने अगवानी की और भावभीना प्रण लिया कि जिस भूमि पर गुरु के चरण पड़ें, वहां व्यसन, हिंसा या अधर्म का नामोनिशान न रहेगा।
गुरुदेव के करुणामय नेत्रों से आशीर्वाद की वर्षा हुई, और क्षणभर को लगा जैसे साक्षात धर्मदेव मुस्कुरा उठे हों।
अमरोद में हुए आहार समारोह का दृश्य और भी भावपूर्ण था – कचनार जैसे छोटे से गांव के भक्त भी यात्रा में चौका लेकर आए हैं।
मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज और क्षुल्लक गंभीरसागर जी महाराज एक ही चौके में विराजे। क्षुल्लकश्री ने पहले गुरु को आहार कराया और फिर स्वयं ग्रहण किया– वह क्षण देखने वाले के लिए साधना का साक्षात पाठ था।
दोपहर की सामायिक के बाद यात्रा फिर आगे बढ़ी। ग्राम ललोई–तारई में रात्रिविश्राम हुआ। वहां ग्राम सरपंच ने पंचों के साथ मिलकर “नशामुक्त गांव” का संकल्प लिया– धर्म का यह असर केवल वाणी में नहीं, जीवन में उतर गया।
अगली सुबह, यात्रा पुनः प्रारंभ होगी– और जब दर्शनोदय तीर्थ पहुंचेगी, तब 100 इंद्र बड़े बाबा की परिक्रमा देकर साष्टांग नमस्कार करेंगे, वह दृश्य अदभुत होगा। जब गुरुदेव के मुख से 1008 ऋद्धि मंत्रों का उच्चारण होगा, और उसी क्षण बड़े बाबा का महामस्तकाभिषेक आरंभ होगा– भक्ति की पराकाष्ठा का दृश्य, जो देखने मात्र से आत्मा को शीतल कर दे।
यात्रा के मार्ग में सेवा की गूंज थी –
कोई बूंदी बाँट रहा था, कोई कचौड़ी, कोई जलसेवा में लगा था।
जैन मिलन, भक्तामर मंडल, दिगंबर जैन युवा वर्ग, सुधा सेवा संगठन, त्रिशला महिला मंडल– सभी ने तन-मन-धन से सेवा की।
कहीं बच्चे जयघोष कर रहे थे, कहीं वृद्धों की आंखों से अश्रु छलक रहे थे।
अशोकनगर से लेकर ग्वालियर, सागर, ललितपुर, महाराष्ट्र और राजस्थान तक से हजारों भक्त इस यात्रा में सम्मिलित हुए।
हर चेहरे पर संतोष था – “हमने अपने जीवन का सबसे पवित्र दिन देख लिया।”
और सच ही तो था –
यह यात्रा केवल कदमों की नहीं थी, यह अंतर्यात्रा थी।
यह केवल अशोकनगर से थूबोन तक नहीं गई, यह तो हजारों हृदयों में उतर गई।
धरती ने धर्म को चलते देखा, आकाश ने भक्ति को झुकते देखा –
और उस क्षण सम्पूर्ण सृष्टि ने मानो कहा –
“धर्म जीवित है… और गुरुजी के चरणों में उसका शाश्वत प्रकाश।”





