राजिम। राजिम कुंभ कल्प में स्थानीय मंच पर कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। जिसमें त्रिवेणी संगम समिति रत्नांचल जिला साहित्य परिषद् एवं प्रयाग साहित्य समिति राजिम के कुल 25 कवियों के विशाल समूह ने छत्तीसगढ़ महतारी की महिमा का बखान अपने गीत, कविता एवं गजल के माध्यम से किया।
कवियों की श्रृंगार, हास्य रस, वीर रस से ओत-प्रोत प्रस्तुति से दर्शक कार्यक्रम के अंत तक बैठे रहे एवं तालियो की गूंज पूरें मेला स्थल में होती रहीं। कवि अपने मन के भाव को कविता में पिरोते है। उसमें रस, छंद, अलंकार के अलावा उसके हदय की अथाह गहराई से निकले शब्द जब दर्शको के हदय को स्पर्श करती है उस समय साहित्यकार का सृजन सार्थक हो जाता है। राजिम कुंभ के सांस्कृतिक मंच में जब छत्तीसगढ़ के चारों दिशाओ से आये विभिन्न समिति के साहित्यकार एक ही माला के मोती बन गये प्रस्तुत है। साहित्य के बागबान के कुछ चुनिंदा गुलाब – नरेन्द्र कुमार पार्थ की चटनी में बांसी़ के मैं कतका करो बखान….. ने दर्शको के हदय को गुदगुदाया। गोकुल सेन ने धुमिल हो रहीं संस्कृति पर कटाक्ष करते हुए कहा का बतावव रे मोर संगी हमर संस्कृति नंदागे….. बड़ी के महत्व को बताते हुए वरिष्ठ साहित्यकार मकसुदन राम साहू ने कहा सुरूज भानु बरोबर गोलगोल रखिया के बड़ी….. गीतकार टीकमचंद सेन ने सुमधुर देशभक्ति से ओत-प्रोत कविता पढ़ी खुशी चाहता हूं न गम चाहता हूं……अपने ओजपूर्ण कविता के माध्यम से पूरे परिसर में रामभक्ति का माहौल बनाते हुए प्रदीप कुमार दादा ने कहा कि राम में लगा हो मन राममय मेरा जीवन होना चाहिए….संतोष सोनकर मंडल ने छत्तीसगढ़ को पवित्र तीरथ धाम बताते हुए कहां जाबे कांशी मथुरा सिधवा यहां के मनखे….. को सुनकर दर्शको ने भूरी-भूरी प्रसंशा की। प्रसिध्द गजलकार जितेन्द्र सुकुमार ने एक रात खामोशी ने खुदखुशी……. सुनाकर वाहवाही लुटी। राजिम कुंभ सांस्कृतिक मंच के संचालक किशोर निर्मलकर ने हरियर लुगरा दाई पहने…… की प्रस्तुति देकर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। कवियित्री सरोज कंसारी ने रोम-रोम राम बसे पावन जिनका नाम… से रामोत्सव थीम पर राजिम कुंभ के नामकरण को सार्थक कर दर्शको से तालिया बटोरी। प्रिया देवांगन ने पबरित हावय माटी सुघ्घर हे परिपाटी….. पर गीत की सुमधुर प्रस्तुति दी।