महानदी आरती : कण-कण आतुर हो जाता है लेकर तेरा नाम
राजिम। राजिम कुंभ कल्प मेला 2024 में जबलपुर से पधारे साध्वी प्रज्ञा भारती के सानिध्य में महानदी का महाआरती की जा रही है। कुंभ मेला में प्रतिदिन संगम तट पर विशाल मंच से मंत्रोच्चारण के साथ पूरी विधि विधान से महाआरती की जाती है। जिसमें आचार्य-पुरोहितो द्वारा मां गंगा का आह्वान कर पूरी श्रद्धा के साथ वैदिक रीति से आरती उतारी जाती है। उनके लिए तैनात आचार्य तट पर बने 11 मंचों से बैठकर-खड़े होकर फिर चारों दिशाओं में घूमकर मां गंगा के स्वरूप की आरती की जाती है। आरती में शामिल होने के लिए श्रद्धालु शाम से ही अपना स्थान सुरक्षित कर लेते हैं। महाआरती में 11 पंड़ितों द्वारा लयबद्ध तरीके से क्रमवार मां गंगा की आराधना करते हुए आरती करते हैं। तत्पश्चात शिव स्त्रोत और शिव तांडव का सस्वर पाठ पूरे वातावरण में ऊर्जा का संचार करते हुए धर्म, आस्था और श्रद्धा की खुशबू से क्षेत्र का कण-कण आतुर हो राममय हो जाता है।
उल्लेखनीय है कि आज से कई वर्षों पूर्व राजिम के संत कवि स्व. पवन दीवान जी अपनी काव्यांजलि भगवान श्री राजीव लोचन को जिस भाव से समर्पित की थी। उस भाव की भावना इस गंगा आरती की आत्मा में दिखाई देती है। उन्हीं की रचित कविता की एक लाईन ‘‘कण-कण आतुर हो जाता है, लेकर तेरा नाम, राजीव लोचन तुम्हें प्रणाम…..’’! स्व. दीवान जी की कविता के ये शब्द यकीनन गंगा आरती से उत्पन्न दैप्तियमान ऊर्जा के प्रभाव से राजिम ही नहीं अपितु महानदी की रेत का कण-कण भी आतुरता के भाव से चल-चला जाता है और भगवान श्री राजीव लोचन के चरणों में शीश नवाते हुए अपनी भावांजलि समर्पित करता है।
राजिम सहित क्षेत्रवासियों के लिए सौभाग्य की बात है कि उन्हें साक्षात गंगा आरती की स्वभावानुति का साक्षात्कार करने का अवसर इस कुंभ में मिला। अन्यथा बनारस, प्रयागराज में होने वाली गंगा आरती की या सिर्फ कल्पना की थी या फिर विशेष अवसरों पर टीव्ही के माध्यम से देखने का अवसर मिला। लेकिन राजिम कुंभ कल्प के दौरान होने वाली गंगा आरती का हिस्सा बनकर लोग रोमांच का अनुभव कर रहे हैं। गंगा आरती के भागीदारों से जब पूछा गया कि उन्हें कैसा लगा तो उनके पास शब्द नहीं थे जिसका प्रयोग वे अपनी भावना व्यक्त कर पाते।
राजिम आने वाला हर खासो आम की एक ही ख्वाहिश रहती है कि वह हर-हाल में गंगा आरती में शामिल होकर उसकी साक्षी बन सकें। क्योंकि गंगा आरती का दुर्लभ विहंगम दृश्य से कोई भी वंचित नहीं होना चाहता है। जबलपुर से पधारे विद्वान पंड़ितों द्वारा इस आरती की विधिरीति अपने आप में विलक्षण है। उससे ऐसा प्रतीत होता है मानो देवता भी स्वर्ग से उतर कर मां चित्रोत्पला की आरती उतारने राजिम की धरा पर उतर आए हो। नदी में झिलमिलाते दीपदान के दीपकों की रोशनी समस्त मनों की अंधकार मिटाते हुए पूरा नगर आध्यात्म की रोशनी में डूबने मचल उठता है। जहां श्रद्धा और भक्ति के भाव स्वतः उत्पन्न होकर मानव जीव को धन्य करता है।