Saturday, July 27, 2024

    कोविड टाइम्स में स्कूली शिक्षा कैसे बदली

    Must read

    जिन बच्चों का जन्म पांच वर्ष पहले हुआ था, वे कोरोना के कारण अब पांच साल की उम्र में स्कूल जा पा रहे हैं। जो पहले जा रहे थे, उनका भी दो वर्षों के दौरान स्कूल की दुनिया से संवाद टूट सा गया था। कोरोना ने सबसे ज्यादा नुकसान बच्चों और उनके संसार को पहुंचाया। वास्तव में मानसिक और शारीरिक रूप से उन्हें कोरोना के दौरान कितना नुकसान पहुंचा, इसका पता लगाया जाना अभी बाकी है। लेकिन इस बात पर लगभग सबकी राय एक है कि बच्चों के भावनात्मक संसार को कोरोना ने जितना नुकसान पहुंचाया है, उसकी भरपाई मुश्किल है। कोरोना काल के दो वर्ष शिक्षण से जुड़े लोगों के लिए चुनौतीपूर्ण तो थे, लेकिन साथ-साथ अवसर भी थे।

    • उस अवधि में समाज ने जो एक नया प्रयोग देखा, उसकी बदौलत हम टेक्नॉलजी के ज्यादा करीब आ गए। इसके जरिए शिक्षक और छात्रों के बीच संवाद को फिर से जीवित करने का प्रयास हुआ। इस लिहाज से टेक्नॉलजी ने कोरोना के संकट में हमारी सहायता की।
    • दूसरे पहलू को देखें तो यह जरूर साफ हुआ है कि तकनीक से बच्चों के व्यवहार में नकारात्मक परिवर्तन भी हुआ है। महामारी के दौरान कुछ लोगों को लगने लगा था कि तकनीकीकरण शैक्षणिक संरचना को पूरी तरह से बदल देगा।
    • इस समय बहुत सी कंपनियां शैक्षणिक उत्पादें लेकर आईं। उनका दावा था कि आने वाले समय में शिक्षा व्यवस्था में शिक्षकों की और कुछ समय बाद स्कूलों की भी जरूरत नहीं रहेगी। अपनी बात को सच साबित करने के लिए उन्होंने बड़े-बड़े नामों के साथ विज्ञापन भी दिया। शुरुआती दिनों में उनके दावों से प्रभावित कुछ स्कूल और अभिभावक आकर्षित भी हुए। लेकिन पाठ्यसामग्री के अभाव और मानवीय संवेदनाओं की कमी ने जल्द ही अभिभावकों को इस भ्रम से दूर कर दिया।

    नतीजतन ये कंपनियां जितनी तेजी से फैल रही थीं, अब उतनी ही तेजी से संकुचित भी हो रही हैं। इसके दो कारण रहे।

    1. पहला, परंपरागत शैक्षणिक संस्थान कोरोना के बाद फिर से खुल गए।
    2. दूसरा, इन कंपनियों के उत्पाद शैक्षणिक दृष्टि से पूर्ण नहीं थे। शिक्षाविद और अब तक के अनुभव बताते हैं कि शिक्षा में शैक्षणिक सामग्रियों का बहुत बड़ा योगदान है। यह शैक्षणिक सामग्री ही है, जिसने सुपर-30 को बिना विज्ञापन के ही पूरे विश्व में चर्चित कर दिया।

    इसलिए कोरोना के बाद जब समाज वापस अपने ढर्रे पर आ रहा है तो स्कूलों और शैक्षणिक व्यवस्था से जुड़े लोगों से अपेक्षा है कि वह पाठ्यसामग्री और उसके प्रस्तुतीकरण पर फिर से चर्चा करें और उनके विकास पर ध्यान दें। इसमें एक महत्वपूर्ण बात और दिख रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्कूली शिक्षा को प्राथमिकता देना शुरू किया है।

    • यह संकेत राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 से मिलने लगा था। लेकिन अभी 5 सितंबर को जब उन्होंने 14,500 नए आदर्श स्कूल खोलने की घोषणा की तो इसकी फिर से पुष्टि हो गई।
    • ये नए मॉडल स्कूल ब्लॉक स्तर पर खोले जाएंगे और हर ब्लॉक में इनकी संख्या दो होगी। ये स्कूल राष्ट्रीय शिक्षा नीति की सिफारिशों के अनुरूप होंगे और केंद्र सरकार इन्हें केंद्रीय विद्यालय और नवोदय विद्यालय के स्तर पर विकसित करेगी।
    • ये नए स्कूल न केवल बच्चों को शिक्षा के लिए प्रेरित करेंगे, बल्कि राज्य सरकारों को भी इसी तर्ज पर स्कूल विकसित करने की प्रेरणा देंगे।

    कोरोना काल के समय हुए शैक्षणिक नुकसान की पूरी भरपाई कर पाना तो संभव नहीं है, न ही हम बच्चों को उनके बीते दो वर्ष लौटा सकते हैं। लेकिन यदि हम अपने पुराने अनुभवों से सीखते हुए एक ऐसी शैक्षणिक व्यवस्था की बुनियाद रख देते हैं जो आगे चलकर कोरोना या कोरोना जैसी किसी भी परेशानी का सामना कर सके तो यह अपने आप में बड़ी सफलता होगी।

    (लेखक सेंटर ऑफ पॉलिसी रिसर्च एंड गवर्नेंस के निदेशक हैं और वर्तमान में एनसीईआरटी गठित शिक्षक शिक्षा के नैशनल फोकस समूह के सदस्य हैं)

    डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने है

        More articles

        Latest article