आजीविका के साथ अर्थिक रूप बने मजबूत
जांजगीर-चांपा 08 अगस्त 2024/ छोटे-छोटे कार्यों को करके लोग आगे बढ़ रहे हैं और वर्तमान समय में लोगों का रुझान बकरीपालन की तरफ तेजी से जा रहा है। सरकार भी इसे काफी ज्यादा बढ़ाने का कार्य कर रही है। ऐसे में गाँव की किसान बकरीपालन कर अपनी सफलता की कहानी रच रहे और लोगों के लिए मिसाल बन रहे हैं। ऐसे ही है हरदीविशाल के रहने वाले कांशीराम जी। जिन्होंने अपनी किस्मत को दूसरों के भरोसे पर नहीं छोड़ा बल्कि बदलते समय के साथ अपने को मजबूत बनाया और अपनी मेहनत के बल से अपनी किस्मत को बदल दिया।
जांजगीर-चांपा जिले के बलौदा विकासखण्ड की ग्राम पंचायत हरदीविशाल में रहते हैं कांशीराम गुजारा चलाने लिए वह अपने खेती-किसानी पर ही निर्भर रहते थे और अपने घर का गुजारा चलाते थे। इसके अलावा उनकी आय का कोई जरिया नहीं था. फिर कुछ साल पहले उन्होंने बकरी पालन कार्य शुरू किया और कम समय में ही इस व्यवसाय से अच्छा लाभ अर्जित करने लगे, लेकिन उनके सामने एक समस्या खड़ी थी कि जिस घर में वह बकरी पालन का कार्य करते थे, वह मिट्टी का था और जर्जर हो चुका था, ऐसे में बारिश और ठंड में बकरियों को सुरक्षित रखना उनके लिए मुश्किल हो रहा था। बीमारियों के चलते कई बार बकरियां मर जाती थी, जिससे उन्हें बहुत हानि हो जाती थी, जितनी भी आमदनी बकरीपालन से होती थी, उससे ही गुजारा चल रहा था।
कांशीराम बताते हैं कि उनके के पास वर्तमान में 20 बकरी है। एक वर्ष के अंतराल में चार बकरी को बेचकर बीस हजार रूपया कमाया जिसे अपने गृहस्थ परिवार का जीवन यापन में खर्च किया एवं चार वर्ष के अंतराल में 40 बकरी को बेचकर दो लाख रूपये कमाया। इस आमदनी का हिस्सा बच्चों की पढाई, खेत एवं घर बनाने मे खर्च किया, लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई थी क्योंकि अब भी बकरियों को रखने के लिए उनके पास कोई पक्का घर नहीं था, ऐसे में कांशीराम बताते है कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से व्यक्तिगत हितग्राही मूलक कार्य के माध्यम से उन्होंने बकरी पालन शेड का आवेदन ग्राम पंचायत में जमा कराया जहां से आवेदन की मंजूरी मिली और तकनीकी प्रस्ताव तैयार करके उसे इंजीनियर ने जनपद पंचायत से जिला पंचायत पंचायत भेजा जहां से 93 हजार 63 रूपए की प्रशासकीय मंजूरी मिली और निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ। कार्य पूर्ण हो जाने के बाद से अब बकरी को पक्का शेड प्राप्त हो गया, जिन्हें बड़े ही आराम से उसमें रखना शुरू किया। इस कार्य में कांशीराम के परिवार ने काम करते हुए 52 दिवस का रोजगार भी प्राप्त करते हुए आय अर्जित की। अब बीमारियों के साथ भीगने और ठंड में कंपकपाने की कोई दिक्कत बकरियों को नहीं होगी। अब और अच्छी आर्थिक स्थिति होने की उम्मीद के साथ वह आगे बढ़ेंगे। अब वह अपने बकरी पालन के इस धंधे को और आगे बढ़ाना चाहते है. वह कहते है कि अगर महात्मा गांधी नरेगा से बकरी पालन शेड नहीं बना होता तो उनके लिए शेड बनाना मुश्किल था।